डाईबिटीज़ की बीमारी के विषय में कुछ बताएँ?
1 min readडाईबिटीज़ की बीमारी के विषय में कुछ बताएँ?
रक्त में सामान्य से अधिक मात्रा में शुगर को डाईबिटीज़ कहते हैं. इस बीमारी में न केवल कार्बोहाईड्रेट बल्कि फैट एवं प्रोटीन का मेटाबोलिज्म दोशपूर्ण हो जाता है. साथ ही खून की नलियों में चर्बी का जमाव भी होने लगता है.
किसी को डईबिटीज़ क्यों हो जाता है?
टाईप 1 डाईबिटीज़ – शरीर में इन्सूलीन बनता ही नहीं है. सारी उम्र इन्सूलीन लेना पड़त है.
टाईप 2 डाईबिटीज़ – इसके कई कारणों में से कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं – शरीर में इन्सूलीन का कम बनना, शरीर द्वारा इन्सूलीन को उपयोग में न ला पाना, लिवर द्वारा अधिक मात्रा में शुगर का उत्पादन इत्यादि. इन कारणों से व्यक्ति के रक्त में शुगर और कॉलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है.
कोई व्यक्ति अचानक टाईप 2 डईबिटीज़ से ग्रसित क्यों हो जाता है?
इसके अनुवांशिक कारण भी हो सकते हैं और रहन सहन एवं कुछ आदतों का दुष्प्रभाव भी हो सकता है. जिनको डईबिटीज़ हो जाता है, उनमें निम्नलिखित में से एक से अधिक कारण प्रायः मौजूद होते हैं – मोटापा, अनुवाँशिक रूप से इन्सुलीन प्रतिरोध, जन्म के समय कम वजन, गर्भकाल में माता द्वारा समुचित एवं संतुलित भोजन का अभाव, वसायुक्त गरिष्ठ भोजन का सेवन, शराब का अत्यधिक सेवन, शारीरिक श्रम का अभाव इत्यादि.
सामान्यतः रक्त में शुगर की कितनी मात्रा होती है?
आठ घंटे की फास्टिंग के बाद 110mg/dl से कम और 75 ग्राम ग्लूकोज़ के सेवन के 2 घंटे बाद 140 mg/dl से कम.
आपके कहने का अर्थ हुआ किसी का फास्टिंग शुगर 110 mg/dl से अधिक है तो उसे डाइबिटीज़ हो गया है?
यदि फास्टिंग शुगर 110 से 125 mg/dl के बीच और 75 gm ग्लूकोज़ के सेवन के 2 घंटे बाद शुगर 140 से 199 mg/dl के बीच हो तो इसको प्रीडाइबिटीज़ कहते हैं. डाइबिटीज़ तभी कहेंगे जब फास्टिंग शुगर 125 mg/dl और 75 gm ग्लूकोज़ के सेवन के 2 घंटे बाद शुगर 199 mg/dl से अधिक हो.
डईबिटीज़ के लक्ष्ण क्या हैं?
कमज़ोरी, थकान, अत्यधिक भूख-प्यास, वजन कम होना इत्यादि. किंतु 60% लोगों को शुगर बढ़ने पर भी कोई लक्ष्ण नहीं उभरता है. अक्सरहाँ आप किसी और ही कारण से डॉक्टर के पास जाते हैं और डॉक्टर को डईबिटीज़ का शक हो जाता है. वह आपके खून की जाँच कराता है, तब पता चलता है कि आपको बाकायदा डाईबिटीज़ हो चुका है.
यदि माता-पिता या दोनों में से किसी एक को डईबिटीज़ है तो क्या उनकी संतान को भी निश्चित तौर पर डाईबिटीज़ हो जाएगा?
इसकी संभावना तो रहती है किन्तु खुशखबरी यह है कि डाईबिटीज़ से बचाव संभव है.
एक व्यक्ति को कितने दिनों के अंतराल पर जाँच कराकर देखते रहना चाहिए कि उसे डाइबिटीज़ या प्रीडाइबिटीज़ तो नहीं हो गया है?
सभी लोगों को बार बार-बार जाँच कराते रहने की आवश्यकता नहीं है. इंडियन डाईबिटीज़ रिस्क स्कोरिंग (IDRS) के माध्यम से यह जाना जा सकता है कि किसी को आने वाले समय में डाईबिटीज़ होने की कितनी संभावना है. केवल आधिक संभावना के लोगों को ही साल में एक बार खून जाँच करानी चाहिए और डईबिटीज़ से बचे रहने के उपाय करने चाहिए.
IDRS के लिए किससे संपर्क करना होगा?
अपने चिकित्सक से संपर्क करें.
जिसकी IDRS Scoring ज्यादा है क्या उसे एक न एक दिन निश्चित रूप से डईबिटीज़ की बीमारी हो जाएगी?
नहीं, IDRS Scoring ज्यादा हो तब भी डईबिटीज़ से बच कर रहा जा सकता है. इसके लिए डॉक्टर की सलाह से जीवनशैली में परिवर्तन आवश्यक है.