June 16, 2025

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ओडिशा में नक्सलियों से लोहा लेते बिहार का लाल शहीद, गांव में पसरा मातम

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सासाराम:बिहार के हिस्से एक बार फिर से शहादत आई है. देश की अंदरूनी सुरक्षा में तैनात रोहतास के सीआरपीएफ जवान धर्मेंद्र कुमार नक्सलियों से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हुए हैं. रोहतास जिला के बिक्रमगंज अनुमंडल क्षेत्र के काराकाट थाना इलाके के दनवार के रहने वाले सीआरपीएफ जवान धर्मेंद्र कुमार उड़ीसा में नक्सलियों के साथ मुठभेड़ के दौरान शहीद हो गए. गांव के लाल के शहादत की खबर सुनने के बाद उनके गांव में मातम पसर गया है.

छत्तीसगढ़ और ओडिशा की सीमा पर सुरक्षाबलों की नक्सलियों से मुठभेड़ हो गई. जिसमें सीआरपीएफ के तीन जवान शहीद हो गए. जानकारी के मुताबिक मंगलवार को छत्तीसगढ़ के गरियाबंद इलाके से लगे ओडिशा के नुवापाड़ा जिले में CRPF-19 बटालियन के जवान रोड ओपनिंग ड्यूटी पर निकले थे. सभी भैंसादानी थाना क्षेत्र के बड़ापारा के जंगल के पास पहुंचे थे, तभी जंगल से नक्सलियों ने अचानक फायरिंग शुरू कर दी.

जिसमें ASI शिशुपाल सिंह, ASI शिवलाल और कॉन्स्टेबल धर्मेंद्र कुमार सिंह नक्सलियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए. बताया जा रहा है कि मौके पर 100 से अधिक नक्सली मौजूद थे. शहीद धर्मेंद्र कुमार सिंह रोहतास जिले के बिक्रमगंज अनुमंडल के कच्छवां ओपी क्षेत्र के सरैया क्षेत्र के रहनेवाले थे.

दनवार के सरैया के लाल के शहादत की खबर सुनने के बाद उनके गांव में मातम पसर गया है. किसान पिता रामायण सिंह के बड़े पुत्र धर्मेंद्र कुमार सिंह वर्ष 2011 में सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे. उनकी पहली पोस्टिंग मोकामा में हुई थी. उनके पिता रामायण सिंह किसान हैं तथा माता सामान्य ग्रहणी है.

पिता का कहना है कि गांव में खेती-बाड़ी कर अपने बेटे को पढ़ा लिखा कर सीआरपीएफ में भर्ती कराया. उनकी आंखों का आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहा है. अपने बुढ़ापे के सहारा छिन जाने का उन्हें काफी दुख है लेकिन अपने पुत्र के सर्वोच्च बलिदान पर उन्हें गौरव भी हैं. मृतक जवान की मां रो-रोकर बेहाल है.

बता दे कि सीआरपीएफ के अधिकारियों ने देर रात ही फोन पर परिजनों को इस सर्वोच्च बलिदान की सूचना दे दी थी. सूचना मिलते ही उनके गांव दनवार के सरैया में मातम फैल गया है. उनके जानने तथा चाहने वाले लोगों की भीड़ शहीद जवान के घर पर इकट्ठा हो गई है.

शहीद जवान की पत्नी आशा देवी भी अपना सुहाग खोने के बाद से बदहवास है. आशा देवी के आंखों का आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहा है. उनका 12 साल का पुत्र रौशन आठवीं क्लास में पढ़ता है, जबकि 10 साल की बेटी खुशी अपने पिता के शहीद होने से पूरी तरह से मर्माहत है.

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