बंगाल के कारीगर ग्रामीण पद्धति से बनाते हैं टुसू पर्व के लिए खजूर का गुड़

जमशेदपुर
झारखंड के आदिवासियों का सबसे बड़ा पर्व टुसू में गुड़ पीठा का एक अलग ही महत्व है। इस गुड़ को खजूर के रस से गांव की पद्दति से बनाया जाता है, जो जमीन में बने सांचे में डाल जमाया जाता है। इस कार्य को बंगाल से आए कारीगर अतरिक्त लाभ के लिए करते हैं।
उत्तर बिहार के मकर पर्व को झारखंड में आदिवासी भाषा भाषी लोग टुसू के नाम से मनाते हैं। जिसमें विशेष खान पान और परम्परागत गीत संगीत का स्थान होता है। जिस टुसू पर्व में गुड़ पीठा का महत्व सबसे ज्यादा होता है, उसे बनाने की विधि भी पारंपरिक होती है ।

आइए आफको बताते हैं कि टुसू गुड़ कैसे बनाया जाता है। जमशेदपुर से दूर गांव में इन दिनों बाजार की डिमांड पर बंगाल के कारीगर बनाते है जो सुबह सूर्य की पहली किरण पर इस कड़ाके की ठंड में खजूर के पेड़ पर चढ उसका रस उतारते हैं और एककत्रित कर घण्टों आग की आंच में ख़ौलाते हैं। जब वह ठोस होने लगता है तब उसको जमीन में बने एक सांचा में डाला जाता है और जब वह सूख कर कड़ा हो जाता है तब उसमें कागज लपेट बाजार में बिक्री के लिए भेजा जाता है। यह पूरी तरह से ग्रामीण पद्धति होती है। कारीगर भी बताते हैं कि, इस काम में मेहनत तो बहुत है मगर इस माह जब मकर पर्व यानी टुसू है तो इस गुड़ की डिमांड भी बहुत है, इसलिए थोड़ी मेहनत तो करनी ही होगी। इस कारीगरी के लिए हम लोग बंगाल से आ कर पूरे माह पूरी लगन के साथ गुड़ बनाते हैं ताकि अत्यधिक लाभ कमा अपने घर वापस जा सके।