यू तो आपातकाल को 42 वर्ष बीत गए लेकिन आपातकाल की काली यादें अब भी लोगों के दिलों में एकदम ताजा है : आशुतोष तिवारी
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जमशेदपुर : भाजपा युवा मोर्चा के जमशेदपुर प्रभारी आशुतोष तिवारी ने आपातकाल के दिनों को याद करते हुए कहा उन दिनों हमारा जन्म तो नही हुआ था लेकिन हमने जितना जाना है भारत के इतिहास में 25 जून 1975 वह तारीख है जिसे भुलाए नही भुलाए जा सकता जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू किया था। जिसके बाद लोकतंत्र और नागरिक आजादी को बंधक बना लिया गया। यू तो आपातकाल को 42 वर्ष बीत गए लेकिन आपातकाल की काली यादें अब भी लोगों के दिलों में एकदम ताजा हैं। हमारे आस-पास बुजुर्ग हो चुकी एक ऐसी पीढ़ी है जिसने उस समय की निरंकुश सत्ता का खुलकर सामना किया था। उन्होंने बताया देश में आंतरिक अशांति को खतरा होने, बाहरी आक्रमण होने अथवा वित्तीय संकट की हालात में आपातकाल की घोषणा की जाती है। देश ने 1962 में चीन के साथ एवं 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान आपातकाल का दौर देखा था, पर यह बाहरी आक्रमण के कारण लगाया गया था। 25 जून 1975 की आधी रात से 21 मार्च 1977 के बीच जो आपातकाल का दौर देश ने देखा, वह आंतरिक अशांति की वजह से अनुच्छेद 352 के अंतर्गत लगाया गया था। 1971 के युद्ध में सोवियत संघ ने भारत का साथ दिया था तथा अमरीका ने पाकिस्तान का। घरेलू मोर्चे पर इसका असर यह हुआ कि आर्थिक क्षेत्र में भारत की नीतियां अधिकाधिक समाजवादी होती गई तथा अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भी भारत कई तरह की संधियों आदि के माध्यम से सोवियत संघ के निकट आता गया। 25 जून की रात से ही देश में विपक्ष के नेताओं की गिरफ्तारियों का दौर शुरू हो गया। जयप्रकाश नारायण, लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी, जॉर्ज फर्नाडीस आदि बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया गया। जेलों में जगह नहीं बची। आपातकाल के बाद प्रशासन और पुलिस के द्वारा भारी उत्पीड़न की कहानियां सामने आई। प्रेस पर भी सेसरशिप लगा दी गई। हर अखबार में सेंसर अधिकारी बैठा दिया, उसकी अनुमति के बाद ही कोई समाचार छप सकता था। सरकार विरोधी समाचार छापने पर गिरफ्तारी हो सकती थी। यह सब तब थमा जब 23 जनवरी 1977 को मार्च महीने में चुनाव की घोषणा हो गई