भारत की इस फिल्म को 5 लाख किसानों ने किया था प्रोड्यूस, सभी ने दिए थे 2-2 रुपए, इस साल Kannes फिल्म फेस्टीवल में जब दिखाई गई लोग रह गए हैरान, पढ़ें पूरी खबर..
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न्यूज़ टेल/डेस्क: (साहिल अस्थाना) जब भी किसी फिल्म की बात होती है तो प्रमुख तौर पर फिल्म के एक्टर , एक्ट्रेस की बात होती है.. जो फिल्म को बारीकी से समझते हैं.. वह डायरेक्टर और प्रोड्यूसर की भी बात करते हैं… जब भी किसी प्रोड्यूसर का जिक्र होता है तो आपके जहन में एक ऐसी तस्वीर छपती होगी कि एक रइस प्रोडक्शन हाउस और उसमें एक रइस व्यक्ति जो फिल्म में पैसों का निवेश करें.. और विभिन्न मंचों पर आप अपना फिल्म दिखा पाए.. फिल्म का निर्माण कर पाए ..लेकिन आज हम आपको दुनिया की एक ऐसी पहली फिल्म के बारे में बताने जा रहे हैं जो किसी भी रईस प्रोडक्शन हाउस द्वारा प्रोड्यूस नहीं की गई थी.. उस फिल्म के प्रोड्यूसर 5 लाख किसान थे.. यह फिल्म आज से 48 साल पहले रिलीज हुई थी और दुनिया की पहली क्राउड फंडिंग फिल्म बनी.. गर्व की बात है कि यह फिल्म भारत में बनी थी और इसके निर्देशक थे श्याम बेनेगल … इस कल्ट क्लासिक फिल्म का नाम है मंथन…और फिर से फिल्म की चर्चाएं तब होने लगी जब 77 वें कांस फिल्म फेस्टिवल में इस फिल्म की स्क्रीनिंग हुई और तालियों से इस फिल्म को सराहा गया… जब फिल्म रिलीज हुई थी यह सभी 5 लाख किसान ट्रकों में भर भर के फिल्म को देखने आए थे… फिल्म में मुख्य तौर पर किरदार निभाया था नसरुद्दीन शाह और स्मिता पाटिल ने…. फिल्म की कहानी दुग्ध क्रांति से प्रेरित है.. भारत में दुग्ध क्रांति वर्गीज कुरियन ने शुरू की थी….
फिल्म के मुख्य कलाकारों में गिरीश कर्नाड, स्मिता पाटिल, अमरीश पुरी अब इस दुनिया में नहीं हैं। फिल्म की पटकथा लिखने वाले विजय तेंदुलकर और संवाद लिखने वाले कैफी आजमी भी इस दुनिया में अब नहीं हैं। गोविंद निहलानी ने मंथन की सिनेमैटोग्राफी की थी। संगीत वनराज भाटिया ने दिया था। वहीं kannes फिल्म फेस्टीवल में बीमारी की वजह से श्याम बेनेगल नहीं आ सके।
वर्गीस कुरियन ने 33 साल की उम्र में गुजरात के खेड़ा जिले के एक गांव में पहली बार दुग्ध उत्पादन की कॉर्पोरेटिव सोसाइटी बनाई थी, जो बाद में आनंद में अमूल कॉर्पोरेटिव सोसाइटी की बुनियाद बनी।
मंथन नसीरुद्दीन शाह के करियर की दूसरी ही फिल्म थी। श्याम बेनेगल ने इस फिल्म में सिनेमाई सौंदर्यबोध को नई ऊंचाई दी है। उन्होंने भारतीय सिनेमा को कलात्मक उंचाई दी है, जिसे हमेशा याद रखा जाएगा।जब यह फिल्म रिलीज हुई तो नसरुद्दीन काफी नर्वस थे, क्योंकि इस फिल्म में न तो चमक-दमक थी, न नाच-गाना, न कोई खास एक्शन। फिल्म के सभी कलाकारों ने बहुत उमदा काम किया था। यही कारण रहा था की प्रतिबद्ध टीम ने मिल कर एक ऐसी फिल्म बना दी जो क्लासिक बन गई।
अगर आपने ये फिल्म नहीं देखी है तो आइए हम आपको इस फिल्म की कहानी बता दें: डॉक्टर राव जिसका किरदार (गिरीश कर्नाड) ने निभाया है वे वेटनरी सर्जन हैं। वे अपने सहयोगियों, चंद्रावरकर (अनंत नाग) और देशमुख (डॉक्टर मोहन अगाशे) के साथ गुजरात के एक गांव पहुंचते हैं, जहां गरीब किसान दूध बेचकर गुजारा करते हैं। वे वहां सरकार की ओर से एक दुग्ध उत्पादन कॉर्पोरेटिव सोसाइटी बनाना चाहते हैं। इससे सबसे ज्यादा नुकसान मिश्रा जी को होता है। मिश्रा जी के किरदार में अमरीश पुरी हैं। जो एक निजी डेरी चलाते हैं और ग्रामीणों के दूध औने-पौने दाम पर खरीदकर शहर में ऊंचे दाम पर बेच देते हैं।
गांव का सरपंच यानी कूलभूषण खरबंदा पहले तो साथ देता है पर जैसे ही इसमें दलितों की भागीदारी बढ़ती है, वह मिश्रा जी के साथ मिलकर इनके दुश्मन बन जाते हैं और फिर साजिशों का दौर शुरू होता है। एक दलित यंग एंग्री मैन है भोला। भोला का किरदार (नसीरुद्दीन शाह ने अदा किया है। बहुत पहले एक शहरी ठेकेदार उसकी मां को गर्भवती बनाकर भाग गया था। भोला अमीरों और ऊंची जाति वालों से नाराज रहता है।डॉक्टर राव के कहने पर दलित एकजुट होकर चुनाव में सरपंच को हरा देते हैं। सरपंच बदला लेने के लिए दलित बस्ती में आग लगवा देता है। वह अपनी ऊंची पहुंच से डॉक्टर राव का तबादला भी करवा देता है।एक दलित लड़की से शारीरिक संबंध बनाने के बाद चंद्रावरकर को भी गांव छोड़कर जाना पड़ता है। डॉक्टर राव की पत्नी गांव आती है और बीमार पड़ जाती है। एक दलित हिम्मती महिला बिंदु (स्मिता पाटिल) अपने छोटे बच्चे के साथ डॉक्टर राव का साथ देती है। तभी उसका लापता पति वापस आ जाता है और डॉक्टर राव पर बदचलनी का आरोप लगाता है। अंत में हम देखते हैं कि डॉक्टर राव अपनी पत्नी के साथ निर्जन रेलवे स्टेशन पर ट्रेन पकड़ रहा है और भोला दौड़ता हुआ आ रहा है। ट्रेन चल देती है। आगे की कहानी भोला की है कि कैसे वह साजिशों के बावजूद डेरी कॉर्पोरेटिव सोसाइटी बनाने में सफल होता है।
अगर आप पूरी फिल्म देखना चाहते हैं तो आपके लिए अच्छी खबर है। फिल्म को 1 जून 2024 को फिर से रिलीज़ किया जायेगा । 70 शहरों में फिल्म को विभिन्न पर्दों पर रिलीज़ किया जायेगा।
भारत कला का धनी देश है। ऐसे कई क्लासिक सिनेमा हैं जो भारत में बने और जिनकी चर्चाएं विदेशों में भी है। कई निर्देशक, कलाकार ऐसे हैं जिनको पढ़ा और सीखा जाता है । उनकी तरह सोच विकसित करने के लिए कई निर्देशक उनके सिनेमा को देखते हैं। आप क्या ये सिनेमा देखने सिनेमा घर जायेंगे? अगर हां तो कमेंट में अपना नाम जरूर बताएं और आपको और कौन सी क्लासिक मूवीज पसंद हैं वो भी बताएं।