भाषाई वैमनस्य के बहाने देश की एकता पर हमला, सरकार सतर्क।
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न्यूज टेल डेस्क: बिहार के एक तथाकथित पत्रकार और नेता द्वारा बनाया गया फर्जी वीडियो, जिसमें दक्षिण भारत में बिहारी मजदूरों के साथ दुर्व्यवहार का दावा किया गया था, देश में भाषाई वैमनस्य फैलाने का एक घातक प्रयास साबित हुआ। जांच में वीडियो फर्जी पाया गया और दोषी को सजा भी मिली, लेकिन वह अब फिर से सामाजिक विद्वेष फैलाने में सक्रिय हो चुका है। महाराष्ट्र विशेषकर मुंबई में भी ऐसे ही घटनाक्रम सामने आ रहे हैं, जहां स्थानीय भाषा न जानने वालों को निशाना बनाया जा रहा है। इस तरह की घटनाएं देश की अखंडता और सामाजिक समरसता के लिए बड़ा खतरा हैं।

मनसे की हरकत से मुंबई गरम, मुख्यमंत्री का सख्त संदेश।
मुंबई के मीरा रोड पर एक दुकानदार के साथ मनसे कार्यकर्ताओं की मारपीट ने राजनीतिक हलचल मचा दी है। मुख्यमंत्री ने दोषियों को सजा देने का आश्वासन दिया है, वहीं हजारों व्यापारियों और महिलाओं ने सड़कों पर उतरकर विरोध जताया। मनसे नेता ने इस प्रदर्शन को भाजपा प्रायोजित बताया और मराठी-अमराठी विवाद को हवा देने का आरोप लगाया। हालांकि सरकार और विपक्ष दोनों इस विवाद के समाधान की बात कर रहे हैं, लेकिन चिंता यह है कि अगर ऐसी सोच आगे भी रही तो महाराष्ट्र के औद्योगिक विकास और सामाजिक ताने-बाने पर गहरा असर पड़ेगा।

भाषाई आधार पर बंटवारे की ऐतिहासिक गलती और आज की त्रासदी।
भारत में भाषाई आधार पर राज्यों के गठन की नींव 1950 के दशक में रखी गई थी, जिसे कई नेताओं और आयोगों ने शुरुआत में अस्वीकार किया था। बावजूद इसके, भाषाई सीमांकन किया गया, और आज भी देश इसी समस्या से जूझ रहा है। 1951 की जनगणना में 844 भाषाएं दर्ज थीं, परंतु 91% आबादी मात्र 14 भाषाएं बोलती है। आज स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि भाषा के नाम पर मारपीट और भेदभाव आम बात हो गई है। ज़रूरत है कि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर ऐसे मामलों पर कठोर कानून बनाएं, वरना देश गृहयुद्ध जैसी स्थिति की ओर बढ़ सकता है।
