तीसरे विश्वयुद्ध की कगार पर दुनिया, भारत फिर भी शांति का अग्रदूत।
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न्यूज टेल डेस्क: विश्व में तीसरे विश्वयुद्ध की आशंका मंडरा रही है। इजराइल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव ने हालात को और गंभीर बना दिया है। इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के तीखे बयान – “तेहरान को राख कर देंगे” – ने आने वाली भयावहता की ओर इशारा कर दिया है। वहीं ईरान ने भी पलटवार की पूरी तैयारी की बात कही है और अपने परमाणु कार्यक्रम पर अडिग रहने की घोषणा की है। दोनों देशों के बीच प्रस्तावित शांति वार्ता रद्द हो चुकी है और अब युद्ध की स्थितियां बन चुकी हैं। इन हालातों में पूरी दुनिया को मानवीय क्षति की चिंता सता रही है, क्योंकि यह लड़ाई सिर्फ दो देशों की नहीं रह जाती, इसका असर वैश्विक स्तर पर महसूस किया जाएगा।
भारत की भूमिका: शांति का संदेश लेकिन आवाजें कमजोर।
स्वामी विवेकानंद के 1893 के शिकागो धर्म महासभा में दिए गए ऐतिहासिक भाषण की प्रासंगिकता आज और बढ़ गई है। भारत ने हमेशा शांति, सनातन धर्म और मानवता के मूल्यों को प्राथमिकता दी है। महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत ने बिना हथियार उठाए अंग्रेजों से आज़ादी पाई, यही दर्शाता है कि भारत की मूल आत्मा संघर्ष नहीं, समाधान है। परंतु जब विश्व आज फिर युद्ध की चपेट में आ रहा है, तब भारत की भूमिका सीमित और उसकी आवाजें कमजोर पड़ती नजर आ रही हैं। क्या आज भारत के पास कोई विवेकानंद, बुद्ध या गांधी हैं जो वैश्विक मंच पर शांति की प्रभावी आवाज बन सकें?
शांति की पुकार: भारत की नीति में आत्मरक्षा प्राथमिकता।
भारत सदैव आत्मरक्षा में विश्वास करता आया है। जब-जब सीमा पर उकसाया गया, भारत ने जवाब जरूर दिया, लेकिन आक्रमण कभी नहीं किया। आज की परिस्थिति में भारत का यही संदेश सबसे अधिक सार्थक है – सनातन के मूल्यों पर आधारित शांति। यदि विश्व को युद्ध की आग से बचाना है, तो किसी को तो पहल करनी होगी। भारत यदि विश्व मंच पर शांति का दूत बनकर उभरे, तो यह केवल हमारी विरासत की रक्षा नहीं, बल्कि वैश्विक मानवता की रक्षा होगी। नहीं तो आज का यह ‘आधुनिक युद्ध’ कब किसी को तबाह कर दे, इसका अंदाजा किसी को नहीं।