October 21, 2025

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सब्जी और फल में न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू हो : ज्योतिर्मय दास

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राज्य के हर प्रखण्ड में कोल्ड स्टोर बने- ज्योतिर्मय दास

जमशेदपुर : छात्र नेता ज्योतिर्मय दास ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिख कर सब्जी और फल में न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू करने और हर विधानसभा में कम से कम 3 या तो हर प्रखण्ड में 1 कोल्ड स्टोर बनाने की मांग की है।
श्री दास ने बताया अगर किसानों को उत्पाद की बिक्री से लागत भी नहीं निकलती तो उसका मोहभंग होता है। कई बार यह सुर्खी बनती है कि किसान अपनी सब्जियों को जैसे टमाटर, बैंगन, गोभी आदि को साप्ताहिक हाट या बाजार में बिक्री करने के लिए जाते हैं, तब उन सब्जियों की उचित कीमत नहीं मिल पाने के कारण वे उसे ओने पौने कीमत पर बेचने पर मजबूर हो जाते हैं और जब इसपर भी कोई खरीदार नहीं मिलता तो मजबूरन किसानों को अपनी सब्जियों को उन्हीं हाट बाजार में फेंक कर हताश होकर घर लौटना पड़ता है। उन्होंने कहा कि हाल ही में सरायकेला -खरसावां जिले के मोहनपुर क्षेत्र के किसानों को एक रुपए किलो टमाटर बेचने पर मजबूर होना पड़ा, इसके वावजूद उन्हें खरीदार नहीं मिला तो मुफ्त में बांट दिए। मनोहरपुर गांव के आसपास किसानों का कहना है कि टमाटर एक रुपए किलो बिक रहा है ऐसे में कमाई तो दूर, गाड़ी में लाने का ढुलाई खर्च भी नहीं निकल रहा है। टमाटर को पुनः वापस ले जाने में अलग खर्च होता है। इस वजह से मुफ्त में ही बांट दिया। राज्य में ऐसे सभी जिले में छोटे-मोटे किसान उपजाई फसल को लागत मूल्य से कम मूल्य पर बेचने पर मजबूर हैं और वह भी नहीं बिकता है, तो मुफ्त में बांट देते हैं या तो सड़क किनारे फेंक देते हैं। ऐसी स्थिति में हमारे किसानों का खेती से मोहभंग हो रहा है।
उन्होंने कहा कि राज्य में सब्जियां पैदा होने के बावजूद हमारे यहां उत्पादित करीब 40 प्रतिशत ताजा खाद्य पदार्थ ग्राहकों तक पहुंचने से पहले ही खराब हो जाते हैं। कई बार अत्यधिक फसल या सब्जी होने पर उसे रखने के लिए हमारे पास पर्याप्त इंतजाम नहीं होते। उल्लेखनीय है कि खाद्य प्रसंस्करण के जरिए एवं सब्जियों को अधिक दिनों तक खराब होने से बचाया जा सकता है, लेकिन राज्य में इसकी सुलभता बहुत सीमित है।
इस बात में कोई संदेह नहीं की किसान हमारे अर्थव्यवस्था की रीढ़ और अन्नदाता हैं। कोरोना महामारी संकट ने पूरी दुनिया में उनकी अहमियत को साबित किया है। भारत सरकार 1985-86 में बाकायदा कृषि मूल्य नीति बनाई जिसमें कहा गया कि किसानों से उपज की खरीद सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है। उनकी रक्षा के लिए भारत सरकार ने दो दर्जन फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से संरक्षण दिया है, लेकिन इस पर खरीद अधिकतर गेहूं और चावल तक सीमित है। यह कड़वी हकीकत है कि राज्य में उत्पादित कुल फल-सब्जियों में से महज 20 से 25 फीशद का कारोबार मंडियों से होता है। लेकिन बाजार की कीमतें यहीं से तय होती हैं। राज्य में कृषि उपज कारोबार में करीब हजारों थोक कारोबारी और खुदरा व्यापारी लगे हुए हैं। वे पूरे राज्यों के किसानों पर भारी है। राज्य में करीब 39 लाख कृषि भूमि धारकों में से 30 -32 लाख छोटे और मझोले किसान हैं। किसानों के संरक्षण और उनके विकास के लिए फल और सब्जियों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से संरक्षण की जरुरत है और साथ में प्रत्येक विधानसभा में कम से कम 3 या हर प्रखंड में एक कोल्ड स्टोर की जरूरत है। इससे उनका जीवन बेहतर होगा। दीर्घकाल में इसका एक सकारात्मक असर यह भी सामने आ सकता है कि उदारीकरण के बाद से जिस प्रकार देश भर में किसानों का खेती से धीरे धीरे मोहभंग होता जा रहा है, वह फिर से एक नई दिशा प्राप्त कर सकता है। इससे गांव से पलायन में कमी आएगी और शहरों पर बढ़ती जनसंख्या का दबाव भी कम होगा।

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