“स्वदेशी की लौ से जगमगाई दीपावली: मिट्टी के दीयों ने कुम्हारों के घरों में भरी खुशियों की रोशनी”
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स्वदेशी अपनाओ अभियान से बढ़ी मिट्टी के दीयों की मांग, कुम्हारों के घरों में लौटी खुशहाली
Newstel desk:इस बार की दीपावली देश के कुम्हारों के लिए खुशियों की सौगात लेकर आई है। “स्वदेशी अपनाओ” के नारों और प्रधानमंत्री द्वारा लोकल उत्पादों को बढ़ावा देने की अपील का असर अब जमीन पर दिखने लगा है। वर्षों से आर्थिक संकट झेल रहे कुम्हार परिवारों के जीवन में इस दीपावली आर्थिक रौशनी जगमगा उठी है। मिट्टी के दीयों, बरतनों और खिलौनों की मांग में अभूतपूर्व बढ़ोतरी ने उनकी मेहनत को असली पहचान दिलाई है।


झारखंड के जमशेदपुर के कुम्हार समुदाय के लोगों का कहना है कि लंबे समय से वे चाक चलाकर मिट्टी से दिए और अन्य सामान तो बनाते थे, लेकिन बिक्री नहीं होने के कारण जीवन कठिनाइयों में गुजरता था। मगर इस बार हालात बदले हैं। बाजारों में मिट्टी के दीये और अन्य स्वदेशी वस्तुओं की डिमांड इतनी बढ़ी है कि कुम्हार रात-दिन ऑर्डर पूरे करने में जुटे हैं। कुम्हारों का कहना है, “पहले हमारी मेहनत पर धूल जम जाती थी, अब वही मेहनत हमें रोशनी दे रही है।”


कुम्हार समुदाय के बुजुर्गों का मानना है कि ‘लोकल फॉर वोकल’ अभियान ने उन्हें आत्मनिर्भर बनने का रास्ता दिखाया है। पहले बाजारों में चाइनीज़ इलेक्ट्रिक दीयों और सजावट के सामान का बोलबाला था, जिससे उनकी रोज़ी-रोटी प्रभावित होती थी। लेकिन इस वर्ष लोगों ने स्वदेशी उत्पादों को प्राथमिकता दी है। इससे न केवल देशी उत्पादकों को प्रोत्साहन मिला है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नई जान आ गई है।

कुम्हारों ने बताया कि पीढ़ियों से यह पेशा उनके परिवारों की पहचान रहा है। “हम मिट्टी के साथ जन्मे हैं और मिट्टी में ही अपनी पहचान ढूंढते हैं,” कहते हैं जमशेदपुर के एक स्थानीय कुम्हार, “लेकिन इस बार हमें लगा कि हमारी मेहनत की कद्र हो रही है। लोग गर्व से हमारे बनाए दिए खरीद रहे हैं।”
अर्थशास्त्रियों का भी मानना है कि स्वदेशी उत्पादों की ओर जनता का झुकाव न केवल छोटे कारीगरों को लाभ पहुंचा रहा है, बल्कि देश की आर्थिक संरचना को भी मजबूत बना रहा है। प्रधानमंत्री की ‘मेक इन इंडिया’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ जैसी पहल का असर अब ग्रामीण उद्योगों तक पहुंच रहा है।

कुल मिलाकर, इस दीपावली ने साबित कर दिया कि अगर देशवासी मिलकर विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करें और स्वदेशी उत्पादों को अपनाएं, तो न सिर्फ आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार होगा बल्कि वह दिन भी दूर नहीं जब भारत विश्व गुरु के रूप में अपना गौरवशाली स्थान फिर से हासिल करेगा।