सावन: शिव भक्ति और आत्मशुद्धि का महीना: आशीष सिंह
1 min read
न्यूज टेल डेस्क: भारत में वर्षा ऋतु की पहली फुहारों के साथ ही आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है। इसी मौसम में आरंभ होता है श्रावण मास, जिसे हम सावन के रूप में जानते हैं। यह महीना भगवान शिव को समर्पित होता है, जिन्हें त्याग, तपस्या और परिवर्तन का प्रतीक माना जाता है। सावन में हर सोमवार का विशेष महत्व होता है। भक्तजन व्रत रखते हैं, शिव मंदिरों में दर्शन के लिए जाते हैं और शिवलिंग पर जल, दूध और बेलपत्र अर्पित करते हैं। इन धार्मिक अनुष्ठानों के पीछे गहरी आध्यात्मिक भावनाएँ और प्रतीकात्मक अर्थ छिपे हैं। बेलपत्र भगवान शिव के त्रिशूल का प्रतीक है, दूध से शिव की उग्र ऊर्जा को शांत करने का प्रयास किया जाता है, जबकि जल अर्पण से कर्मशुद्धि और नकारात्मक ऊर्जा का नाश माना जाता है।

आध्यात्मिक अनुशासन और सामाजिक जिम्मेदारी का संगम।
सावन केवल पूजा-पाठ का महीना नहीं, बल्कि आत्मनियंत्रण और अनुशासन का अभ्यास भी है। खासकर सोमवार का दिन चंद्रमा (सोम) से जुड़ा है, जो मन का स्वामी माना जाता है। शिव की आराधना से मानसिक संतुलन और शांति की प्राप्ति होती है। महिलाएं इस मास में पति की दीर्घायु और उत्तम जीवनसाथी के लिए व्रत करती हैं, जबकि पुरुष आत्मिक शक्ति और ज्ञान की प्राप्ति के लिए उपवास रखते हैं। सावन का सामाजिक पहलू भी महत्वपूर्ण है। इस दौरान वृक्षारोपण, जल संरक्षण और नदी स्वच्छता जैसे कार्य किए जाते हैं, जो परंपरा और पर्यावरणीय चेतना के बीच संतुलन स्थापित करते हैं।

सावन का संदेश: आध्यात्मिकता जीवन जीने की कला।
सावन केवल धार्मिक परंपराओं का महीना नहीं है, बल्कि यह हमें जीवन के गूढ़ रहस्यों से जोड़ता है। शिव की पूजा के माध्यम से हम अपने भीतर की नकारात्मकता को समाप्त कर जीवन में सकारात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं। आधुनिक समय में भी सावन हमें सिखाता है कि अध्यात्म केवल एक आस्था नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक कला है। यह समय हमें हमारी जड़ों से जुड़ने और प्रकृति, समाज तथा आत्मा के संतुलन का पाठ पढ़ाता है।