पेसा कानून लागू करने से सरना समाज को मिलेगा सांस्कृतिक अधिकार और कानूनी पहचान: रघुवर
1 min read
न्यूज टेल डेस्क: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता रघुवर दास ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर राज्य में पेसा कानून की नियमावली को शीघ्र अधिसूचित कर लागू करने की मांग की है। उन्होंने बताया कि 1996 में संसद से पारित यह कानून अनुसूचित क्षेत्रों में स्वशासन की अवधारणा को साकार करता है, लेकिन झारखंड में आज तक लागू नहीं हुआ। उन्होंने 2018 में अपने कार्यकाल के दौरान इसकी शुरुआत की बात कही और बताया कि 2023 में नियमावली का प्रारूप प्रकाशित कर सुझाव लिए गए थे। विधि विभाग और महाधिवक्ता से अनुमोदन के बावजूद अब तक अधिसूचना जारी न होने पर उन्होंने सरकार की मंशा पर सवाल उठाए।

पेसा कानून से जनजातीय परंपराओं को मिलेगा संरक्षण
दास ने पेसा कानून को जनजातीय समाज की अस्मिता और स्वशासन की आत्मा बताया। उन्होंने बताया कि यह कानून सरना समाज की परंपरा, रीति-रिवाज और धार्मिक विश्वासों के दस्तावेजीकरण और संरक्षण में सहायक होगा। उन्होंने विभिन्न जनजातीय समुदायों जैसे मुंडा, संथाल, उरांव और हो समाज की पारंपरिक पूजा और रिवाजों का उल्लेख करते हुए कहा कि पेसा कानून के जरिए इन्हें कानूनी संरक्षण मिल सकता है। उन्होंने ग्रामसभा की भूमिका और पंचायत राज अधिनियम की धाराओं का हवाला देते हुए बताया कि इससे समुदायों को सांस्कृतिक अधिकार प्राप्त होंगे।

सरना धर्म कोड पर रखी राय, केंद्र की नीति का भी किया उल्लेख।
पूर्व मुख्यमंत्री ने पत्र में सरना धर्म कोड पर भी चर्चा की और बताया कि 2013 में लोहरदगा सांसद सुदर्शन भगत द्वारा संसद में यह मुद्दा उठाया गया था। 2014 में केंद्र सरकार ने कहा था कि अलग धर्म कोड देना व्यवहारिक नहीं है क्योंकि देश में 100 से अधिक जनजातीय पंथ हैं। दास ने कहा कि यदि राज्य पेसा कानून पूरी तरह लागू करता है, तो ग्रामसभा के माध्यम से सरना समाज की उपासना पद्धति को दस्तावेज के रूप में सरकार को प्रस्ताव भेजा जा सकता है, जिसे कानूनी रूप दिया जा सकेगा। इससे सरना समाज की सांस्कृतिक पहचान को कानूनी मान्यता मिल सकेगी और अलग धर्म कोड की आवश्यकता स्वतः पूरी हो जाएगी।
