हिंदी पत्रकारिता के 200 साल: मूल्यबोध और राष्ट्रहित बने मीडिया का आधार– प्रो. संजय द्विवेदी


न्यूज टेल डेस्क: 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन वर्ष 1826 में पंडित युगुल किशोर शुक्ल ने कोलकाता से हिंदी का पहला समाचार पत्र ‘उदंत मार्तण्ड’ प्रकाशित किया। संयोगवश, यह दिन नारद जयंती भी था, जिसे पत्रकारिता के प्रतीक रूप में देखा जाता है। शुक्ल जी ने अपने संपादकीय में ‘हिंदुस्तानियों के हित के हेत’ को पत्रकारिता का उद्देश्य बताया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि राष्ट्रहित और मूल्यबोध ही हमारे मीडिया की नींव रहे हैं। यह विरासत आज भी प्रासंगिक है, भले ही समय के साथ पत्रकारिता की दिशा और दशा में बदलाव आए हों।

भूमंडलीकरण के बाद बदलते मूल्य और मीडिया का असमंजस।
1991 में आर्थिक उदारीकरण के बाद भारत का समाज और मीडिया दोनों बड़े बदलावों से गुजरे। सेवा, संयम और राष्ट्रकल्याण जैसे परंपरागत मूल्य पीछे छूटने लगे और उनकी जगह व्यावसायिक सफलता, चर्चा में बने रहना और बाजार केंद्रित सोच ने ले ली। सोशल मीडिया के प्रभाव, मोबाइल संस्कृति, और पाठकीय रुचियों में बदलाव ने मीडिया के कंटेंट को भी तेजी से बदला है। आज ‘सच्चाई’ की तलाश कठिन हो गई है, लेकिन मीडिया की सार्थकता उसी में है। लाखों की प्रसार संख्या होने के बावजूद ‘भरोसा’ एक ऐसा मूल्य है जिसे अर्जित करना अब भी सबसे बड़ी चुनौती है।

मूल्य आधारित मीडिया की आवश्यकता और संभावनाएं
मीडिया के आदर्श, मूल्य और सिद्धांत भले आज के दौर में बेमानी से लगें, लेकिन सच की खोज और जन सरोकारों से जुड़ी पत्रकारिता का महत्व हमेशा बना रहेगा। आज भी कुछ पत्रकार और संस्थान आदर्शों की राह पर डटे हुए हैं और समाज में बदलाव की अलख जगा रहे हैं। यह समय जब सांस्कृतिक निरक्षरता और संवेदनहीनता बढ़ रही है, तब मीडिया को अपने सामाजिक उत्तरदायित्व की ओर लौटना होगा। यदि मीडिया को लोकसम्मान और विश्वसनीयता अर्जित करनी है, तो उसे मूल्यों के साथ खड़ा होना ही होगा। आइए, इस हिंदी पत्रकारिता दिवस पर हम इस जिम्मेदारी को पुनः स्मरण करें और एक सार्थक, संवेदनशील एवं सरोकारी मीडिया की दिशा में कदम बढ़ाएं।
