झारखंड में CNT एक्ट के 117 साल पूरे: 271 धाराएं, 57 संशोधन और आदिवासी भूमि सुरक्षा की कहानी
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झारखंड:आज छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (Chotanagpur Tenancy Act – CNT Act) के लागू होने की 117वीं वर्षगांठ है। यह अधिनियम 11 नवंबर 1908 को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य आदिवासी भूमि की रक्षा और गैर-आदिवासियों को भूमि हस्तांतरण पर रोक लगाना था। सीएनटी एक्ट को बंगाल काश्तकारी अधिनियम, 1885 की तर्ज पर तैयार किया गया था और इसे जनजातीय विद्रोहों के परिणामस्वरूप लागू किया गया। इस अधिनियम का प्रारूप (ड्राफ्ट) फादर जॉन हॉफमैन द्वारा तैयार किया गया था।इस कानून में कुल 271 धाराएं हैं और अब तक 57 बार संशोधन किए जा चुके हैं, जिनमें 1929, 1938, 1948 और 1969 के प्रमुख संशोधन शामिल हैं। 1947 में किए गए संशोधन के तहत यह प्रावधान जोड़ा गया कि कोई भी रैयत अपनी भूमि से इस्तीफा देने से पहले उपायुक्त की अनुमति लेगा।

विशेषज्ञों के अनुसार, यह अधिनियम पूरी तरह भूमि विवादों को समाप्त नहीं कर सका, परंतु इसने आदिवासी भूमि पर बाहरी कब्जे को काफी हद तक रोका।झारखंड जनजातीय कल्याण एवं शोध संस्थान (अब डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान) ने राज्य गठन के कुछ वर्षों बाद सीएनटी एक्ट पर 108 पन्नों की एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें इसके इतिहास, अध्ययन विधि, जनजातीय भूमि समस्याएं और वर्तमान स्वरूप का विस्तार से उल्लेख है।

आज जब राज्य अपने 25वें स्थापना दिवस समारोह (Jharkhand@25) की तैयारियों में जुटा है, वहीं इस अधिनियम की वर्षगांठ यह याद दिलाती है कि झारखंड की पहचान उसकी भूमि, संस्कृति और जनजातीय अधिकारों से जुड़ी हुई है।